बुधवार, 22 अप्रैल 2015

क्या माँगूँ मैं हाथ पसारी ?




उद्बुद्ध करते तिमिर प्रकाश में 
अनगिन वैचारिक श्रृंखलाएँ 
यह उद्वेलन शीतल जो कर दे
वह दैदीप्य कहाँ से लायें ll  

ज्ञान समंद में उबडुब अज्ञानी 
भँवर पार कर ओ अवहारी 
बिन गुरु ज्ञान होत  नहीं तारी  
कि  क्या  माँगूँ मैं हाथ पसारी ?

…… उत्पल कांत मिश्र "नादाँ" 

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